''अम्बर-पनघट में डुबो रही, तारा-घट ऊषा-नागरी'' में कौन-सा अलंकार हैं ? (ambar-panaghat mein dubo rahee, taara-ghat oosha-naagaree mein kaun-sa alankaar hain ? ) - www.studyandupdates.com

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''अम्बर-पनघट में डुबो रही, तारा-घट ऊषा-नागरी'' में कौन-सा अलंकार हैं ? (ambar-panaghat mein dubo rahee, taara-ghat oosha-naagaree mein kaun-sa alankaar hain ? )

 ''अम्बर-पनघट में डुबो रही, तारा-घट ऊषा-नागरी'' में कौन-सा अलंकार हैं ?

  1.  श्लेष
  2.  रूपक
  3.  उपमा
  4. अनुप्रास

उत्तर-  रूपक


अंबर-पनघट में डुबो रही तारा-घट उषा-नागरी में रूपक अलंकार है। ‘अंबर-पनघट में डुबो रही तारा-घट उषा-नागरी’ इस काव्य पंक्ति में आकाश रूपी पनघट में उषा रूपी स्त्री तारा रूपी घड़े डुबो रही है। इसमें आकाश पर पनघट का और उषा पर स्त्री का तथा तारा पर घड़े का आरोप है, इसलिए यहाँ ‘रूपक अलंकार’है।

दूसरे शब्दों में कहें तो अंबर, तारा और उषा से क्रमशः पनघट, घड़ा एवं नागरी (स्त्री) का संबंध ऐसे वर्णित किया गया है कि इनके मध्य कोई भेद ही नहीं रह गया है। इसी को उपमेय में उपमान का आरोप कहते हैं।


अम्बर पनघट में डुबो रही-
तारा-घट ऊषा नागरी ।
खग-कुल कुल-कुल सा बोल रहा,
किसलय का अंचल डोल रहा. लो यह लतिका भी भर लाई-
मधु मुकुल नवल रस गागरी।

भावार्थ -

-  कवि कहता है रात बीत गई है सखी। अब जाग जा। देख उषा काल में अरुणिम उषा की उज्ज्वलता के कारण तारें ऐसे विलीन हुएं जाते हैं मानो कोई सुंदर रमणी (उषा रूपी) अपने घट को (ताराओं के) पनघट/सरोवर में (अम्बर रूपी) डुबो रही हो। इस प्रकार कवि ने उषा के आगमन से अंधकार के तिरोहित हो जाने तथा तारकों के प्रकाश में विलीन होने की क्रिया को रमणी, घट और पनघट के रूपक से प्रकट किया है।

कवि आगे कहता है- 'सखी देख खग कुल अर्थात पक्षियों का समुदाय कुल कुल' की मीठी आवाज निकाल रहा है। सुखद शीतल मलयानिल के प्रवाह के कारण किसलय अर्थात नव पल्लवो (नई कोपलों) का समूह आँचल के समान डोल रहा है तथा यह देख यह लता भी मधुमय सौरभ युक्त नव-कलिकाओं से भर कर रस की गागर के समान प्रतीत हो रही है।" हर तरफ चहल-पहल है, प्रभात का उत्सव है। कवि ने प्रभात कालीन वातावरण का अत्यन्त मनोरम चित्रण प्रस्तुत किया है। उसकी सौंदर्यान्वेषी दृष्टि से कोई भी छोटी-बड़ी घटना बची नहीं है। प्रकृति के प्रत्येक स्पन्दन में सौदर्य के दर्शन करते हुए कवि ने उसमें चेतना का आरोप करते हुए उसका मानवीकरण कर दिया है।


प्रातः काल हो गया है, इस तथ्य पर बल देते हुए सखी कहती है कि पक्षियों के कलरव (चहचहाने) का स्वर सुनाई दे रहा है और कोपल के आँचल में थिरकन हो रही है, अर्थात् धीमी- धीमी हवा से कोपले थिरकने लगी है और सुनो, यह लता भी अपने अधखिले फूल रूपी गगरी में नया रस भर लाई है। कली से फूल बदलने की प्रक्रिया में अथधखिले फूल की आकृति कलश यानी गगरी जैसी होती है और बीच में ताजा रस से पूर्ण पराग होता है। अतः यहाँ अधखिले फूल और रस से भरी गगरी की समानता और एक-सी दीखने के आधार पर रूपक खड़ा किया गया है।

पक्षियों का कलरव सुनाई पड़ने लगा है। धीरे-धीरे चलने वाली सुबह की हवा के स्पर्श से कोपलों में थिरकन होने लगी है और लता भी जैसे अपने नए अधखिले फूलों के रूप में रस की गगरी भर लाई है। पक्षियों के चहचहाने को कलरत कहते हैं- कल का रव यानी कल-कल की आवाज। इसी को यहाँ कुल-कुल कहा गया है। कुल का एक अर्थ होता है समूहा खग कुल यानी पक्षियों का समूह कुल कुल-सा बोल रहा अर्थात् पक्षी कलरव कर रहे हैं।

इतनी-सी बात को कवि ने बड़ी सुंदरता से उपमानों के सहारे व्यक्त किया है। 'कुल-कुल-सा' पर ध्यान दे । ऊषा नागरी अंबर रूपी पनघट में तारा-घट डुबो रही है। पानी में डुबो कर घड़ा भरते समय जो 'कुल-कुल की आवाज होती है वह सग कुल पक्षी समूह के कलरव से व्यक्त हो रही है। इसलिए कहा है-खम-कुल कुल-कुल-सा बोल रहा। घड़ा भरने के बाद उसे सिर पर उठाकर ला रही है लतिका। लतिका नए रस से भरी गागर लेकर चली आ रही है।





 रूपक अलंकार -  रूपक  अलंकार एक प्रकार का अर्थालंकार है जिसमें बहुत अधिक साम्य के आधार पर प्रस्तुत में अप्रस्तुत का आरोप करके अर्थात् उपमेय या उपमान के साधर्म्य का आरोप करके और दोंनों भेदों का अभाव दिखाते हुए उपमेय या उपमान के रूप में ही वर्णन किया जाता है। 


इसके सांग रूपक, अभेद रुपक, तद्रूप रूपक, न्यून रूपक, परम्परित रूपक आदि अनेक भेद हैं।

 उदाहरण-

1- चरन कमल बन्दउँ हरिराई

2- संतौ भाई आई ज्ञान की आंधी रे।







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